गोविंद धाम में आपका स्वागत है!

हमारा लक्ष्य

हमारा लक्ष्य
धर्म की संस्थापना करना और अधर्म का विनाश करना

  • शारीरिक और मानसिक विकास
  • आध्यात्मिक विकास
  • सामाजिक विकास

आध्यात्मिक विकासः -

श्रीगोविंदधाम गतौली, जींद, हरियाणा का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक जीव का आध्यात्मिक विकास करना है। पूरी मानव जाति के अंदर जागृति फैलाना है। जीव को सनातन धर्म के माध्यम से साकार से निराकार और अंततः आत्मज्ञान को उपलब्ध करवाना है। इसके अंर्तगत निम्नलिखित चीजें आती हैं।



ध्यान योगः-

ध्यान का अर्थ है होश, जागरूकता एंव बोध। योग के अनुसार अष्टांगयोग में अतंरंग अंग धारणा, ध्यान और समाधि है। श्रीगोविंदधाम गतौली, जींद हरियाणा में ध्यान योग के अंतर्गत अनेकों ध्यान विधियों से जीव को ध्यान और समाधि की तरफ अग्रसर किया जाता है। आज के दिन श्रीगोविंदधाम में कम से कम 100 विधियों पर काम किया जा रहा है। जिनसे जीव को आसानी से आत्मज्ञान की तरफ मोड़ा जा सके। विचार से निर्विचारता की तरफ, ध्वनि से निध्र्वनि की तरफ मोड़ा जा सके और रूप से अरूप की तरफ, मन से नमन की तरफ, काम से राम की तरफ, उर्जा के उध्र्वगमन से जीव को तत्वज्ञान का अनुभव करवाया जा सके।



भक्तियोगः-

यह योगभाव प्रधान हृदय प्रधान योग है। इसके अतंर्गत जीव को गोविंद जी की भक्ति की तरफ अग्रसर किया जाता है। भक्तियोग परा-पे्रम का मार्ग है। जिस पर चलकर जीव अपने ईष्ट पर पूर्ण समर्पित हो जाता है और अंततः एकीकार हो जाता है। भक्तियोग में जीव को निष्काम प्रेम तथा समर्पण सिखाया जाता है। इसकी शुरूआत जीव को रूप के ध्यान से करवाई जाती है तथा भाव समाधि तक ले जाया जाता है। भक्तियोग के द्वारा जीव को ‘‘साकार सिद्धि’’ तक ले जाया जाता है। फिर निराकार सिद्धि और अंततः आत्मसिद्धि पर पहुंचाया जाता है।



कुण्डलीनी शक्ति जागरण एंव शक्तिपात दिक्षाः-

श्रीगोविंदधाम गतौल, जींद हरियाणा में श्री गुरू रणदीप जी द्वारा योग्य एंव पात्र साधकों पर शक्तिपात प्रक्रिया द्वारा कुण्डलीनी शक्ति जागरण किया जाता है। पूरे विश्व में शक्तिपात करने में समर्थ केवल कुछ ही गुरू हैं उनमें से संतशिरोमणि सद्गुरू रणदीप जी सर्वोपरि हैं। सद्गुरू जी दृष्टिमात्र से शक्तिपात कर देते हैं। श्रीगोविंदधाम में बहुत से साधकों की कुण्डलीनी जागृत हो रही है। शक्तिपात दिक्षा से बहुत ही कम समय में साधक के सभी चक्र पूर्णतः जागृत हो जाते हैं और स्वतः ही सिद्धियाँ प्राप्त होने लग जाती हैं। शक्ति मूलाधार चक्र से उध्र्वगामी होकर सहस्त्र चक्र से होती हुई अनन्त के साथ एकीकार कर जाती है। शक्तिपात दिशा मानव को मानव से महामानव बनाने में अनन्त उपयोगी है।



ब्रह्मसूत्र और सारनाम दिक्षा:-

सत्गुरू रणदीप जी बताते हैं कि परमत्ता शब्दों से परे हैं जहाँ तक शब्द हैं, वहाँ तक माया है। आज जो मानव की स्थिति है वह बहुत गिर चुकी है उसे शब्दों से परे एकदम नही ले जाया जा सकता। इसलिए गुरूजी जीव के कल्याण के लिए एक विधि का उपयोग करते हैं जिसे ब्रह्मसूत्र सारनाम दिक्षा कहते हैं। इस दिक्षा में गुरूजी साधक को एक सूत्र प्रदान करते हैं इस सूत्र को लगातार जपने से साधक की कुण्डलीनी शक्ति उध्र्वगामी होने लगती है और उसे दिव्य अनुभव घटने लगते हैं। यह ब्रह्मसूत्र जीव और ब्रह्म के बीच में डोर का काम करता है जिसके सहारे वह अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है।


आगामी कार्यक्रम

पूर्णिमा प्रोग्राम

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