सन्तों की दृष्टि की ताकत
इस वीडियो के माध्यम से गुरु रणदीप जी ने बताया है कि जीव माया से बचकर कहीं दूर नहीं भाग सकता । शब्दों के जाल में जीव ऐसे उलझ गया है कि वह वास्तविक ध्यान ,भजन, सुमिरन और भक्ति से दूर भाग रहा है । भागने और जागने में बहुत अंतर है । जागना तो वह है जब आप नाम रटना आरंभ कर देते हैं । जब परमात्मा की कृपा बरसती है तो जीव का समर्पण होने लगता है । अनेकों लोग गुरु के सामने दिखावा करते रहते हैं कि हमें भक्ति ,मोक्ष, परमात्मा चाहिए जबकि उनके मन के अंदर सांसारिक कामनाओं का जाल और अनेकों अतृप्त इच्छाएं भरी रहती हैं । लेकिन पूर्ण गुरु के पास दिव्य दृष्टि होती है उन्हें सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है ।
जब संतजन कृपा बरसाते हैं तो जीव नींद में भी परमात्मा का सुमिरन करने लगता है ।जिरह तृक वितर्क में न उलझ कर जीव भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने लगता है ।
जीव की स्थिति इतनी ऊपर चली जाती है कि वह किसी से भी बातें करता हुआ एक दम ध्यान में प्रवेश कर जाता है । जीव बिना ध्यान भजन के इस संसार में भटकता ही रह जाएगा । ध्यान ही एकमात्र रास्ता है मन को शून्य करने का ।