Thursday, Jun 2nd 2022
इस वीडियो के माध्यम से गुरु रणदीप जी ने बताया है कि जब यह जीव परमात्मा के मार्ग पर चलने लगता है तो उसे केवल एक ही लक्ष्य दिखाई देता है कैसे और कब होगी परमात्मा की प्राप्ति । इसका उपाय केवल भक्ति व समर्पण ही है । गुरु व हरि के साथ भावों से जुड़ने वाले जीव का कल्याण निश्चित हो ही जाता है । इसलिए सभी को पूर्ण गुरु की खोज करनी चाहिए व हरि के नाम का सुमिरन करना चाहिए ।
जब जो परमात्मा के मार्ग पर चलने लगता है तो समाज की रीति-रिवाजों ,बेबुनियादी बातों का ज्यादा महत्व नहीं रह जाता । उसके लिए यह बात ज्यादा मायने रखती है कितनी देर उसका परमात्मा के सुमिरन में मन लगता है व कितने घंटे उसने ध्यान किया ,कितनी उसकी कुंडलिनी शक्ति की आत्मिक चढ़ाई हो गई है ।कैसे इस मन को काबू करें ।
भक्ति व समर्पण ही एकमात्र उपाय है । जब जीव का परमात्मा से हृदय के साथ और भावों के साथ जुड़ाव होने लगता है तो फिर वह अपने गुरु से चाहे कितनी ही दूर क्यों ना हो गुरु रूपी भगवान को याद करते ही आंसू बहाने लगता है । लेकिन बहुत से लोग नकारात्मक ऊर्जा उसे भयभीत होकर गुरु की शरण ग्रहण करते । लेकिन सदगुरुदेव जी लोगों को भय मुक्त करते हैं व उन्हें भावों के साथ जोड़ देते है ताकि उनका ईश्वर के प्रति प्रेम बनने लगे ।
जब जीव संतो से मिलने के लिए , उनके दर्शनों के लिए एक-एक कदम बढ़ा कर आते हैं तो करोड़ों- करोड़ों यज्ञों के पुण्य के समान पुण्य प्राप्त होता है । क्योंकि उस वक्त शरीर, मन, विचार ,इंद्रियां ,भाव सभी के सभी केवल एक ही दिशा में संतो के दर्शन के इच्छुक होते हैं ।
जब जीव परमात्मा के मार्ग पर चलने लगता है तो समाज की रीति-रिवाजों ,बेबुनियादी बातों का ज्यादा महत्व नहीं रह जाता । उसके लिए यह बात ज्यादा मायने रखती है कितनी देर उसका परमात्मा के सुमिरन में मन लगता है व कितने घंटे उसने ध्यान किया ,कितनी उसकी कुंडलिनी शक्ति की चढ़ाई हो गई है । कैसे इस मन को काबू करें ।
भक्ति व समर्पण ही एकमात्र उपाय है । जब जीव का परमात्मा से हृदय के साथ और भावों के साथ जुड़ाव होने लगता है तो फिर वह अपने गुरु से चाहे कितनी ही दूर क्यों ना हो गुरु रूपी भगवान को याद करते ही आंसू बहाने लगता है । लेकिन बहुत से लोग नकारात्मक ऊर्जा उसे भयभीत होकर गुरु की शरण ग्रहण करते । लेकिन सदगुरुदेव जी लोगों को भय मुक्त करते हैं व उन्हें भावों के साथ जोड़ देते है ताकि उनका ईश्वर के प्रति प्रेम बनने लगे ।
जब जीव संतो से मिलने के लिए , उनके दर्शनों के लिए एक-एक कदम बढ़ा कर आते हैं तो करोड़ों- करोड़ों यज्ञों के पुण्य के समान पुण्य प्राप्त होता है । क्योंकि उस वक्त शरीर, मन, विचार ,इंद्रियां ,भाव सभी के सभी केवल एक ही दिशा में संतो के दर्शन के इच्छुक होते हैं ।