ब्रह्मसूत्र और सारनाम दिक्षा
सत्गुरू रणदीप जी बताते हैं कि परमत्ता शब्दों से परे हैं जहाँ तक शब्द हैं, वहाँ तक माया है। आज जो मानव की स्थिति है वह बहुत गिर चुकी है उसे शब्दों से परे एकदम नही ले जाया जा सकता। इसलिए गुरूजी जीव के कल्याण के लिए एक विधि का उपयोग करते हैं जिसे ब्रह्मसूत्र सारनाम दिक्षा कहते हैं। इस दिक्षा में गुरूजी साधक को एक सूत्र प्रदान करते हैं इस सूत्र को लगातार जपने से साधक की कुण्डलीनी शक्ति उध्र्वगामी होने लगती है और उसे दिव्य अनुभव घटने लगते हैं। यह ब्रह्मसूत्र जीव और ब्रह्म के बीच में डोर का काम करता है जिसके सहारे वह अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है।